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शनि की साढ़े साती और उसका प्रभाव

ज्योतिष जिज्ञासा
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शास्त्रों के अनुसार, शनि को न्याय का देवता माना जाता है। इसके अनुसार शनि सबको उसके कर्मों का फल अवश्य देता है। शनि की दशा महादशा, जिसे आम भाषा में साढ़ेसाती व ढ़ैया के रुप में जाना जाता है,का नाम सुनते ही लोगों के भीतर एक भय आ जाता है। शनि अपनी दशा या महादशा के दौरान केवल बुरे ही परिणाम नहीं देता बल्कि अच्छे फल भी देता है। उदाहरणस्वरुप, धीरूभाई अंबाणी, आर.डी.टाटा, इंदिरा गाँधी, आस्कार वाइल्ड और वॉल्ट ड़िजनी जैसे महानुभावों ने शनि की पनौती में ही सफलता के शिखर को प्राप्त किया।

शनि के साढ़ेसाती या ढ़ैया के दौरान लोगों को यह एहसास होता है कि उनके साथ होने वाली घटनाएं उस गति से नहीं हो रही हैं जिस गति से होनी चाहिए। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्र मन का कारक ग्रह है और चंद्र के साथ शनि का संपर्क मन के आवेगों की गति को कम करता है। इसलिए हम पनौती के दौरान घटनाओं में मंदता का एहसास करते हैं। चूंकि शनि कठोर तथा अनुशासित प्रवृति का है, इसलिए अनुशासनबद्ध होकर वह सभी नियमों का कठोरता से पालन करवाता है। इसका साकारात्मक पहलू यह है कि शनि की पनौती के दौरान मनुष्य को अपनी शक्ति को जांचने का अवसर मिलता है। शनि जितना कठोर है, उतना ही कोमल। वह अपनी दशा के दौरान लोगों को अनुशासन सिखाने की कोशिश करता है तथा धैर्य व स्थिरता प्रदान करता है। यूं कहें कि मन के विकारों को दूर करके उसे निर्मल कर देता है।

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि यानि शनै शनै चलने वाला यानि सबसे मंद चलनेवाला ग्रह है। शनि प्रत्येक ढाई वर्ष पर अपनी राशि बदलता है और इस तरह ३० वर्ष में एक राशि चक्र ( १२ राशियों का) को पूरा करता है। शनि की दशा तब शुरु होती है जब जन्म के चंद्र से गोचर का शनि बारहवें स्थान पर आता है। जन्म के चंद्र पर जब गोचर का शनि आता है तब इस दशा का दूसरा दौर शुरू होता है । तीसरा दौर तब शुरु होता है जब जन्म के चंद्र के बाद की राशि में गोचर का शनि प्रवेश करता है। इस तरह से यह घटना साढ़े सात वर्ष चलती है। जन्म के चंद्र से चौथे और आठवें स्थान पर जब गोचर का शनि आता है, तब ढाईया यानी कि ढाई वर्ष की छोटी पनौती मानी जाती है।

शनि के पनौती के चार पाए होते हैं- सोना, चांदी, तांबा तथा लोहा । पनौती के दौरान लोहे और तांबे के पाए को खराब तथा चाँदी और सोना के पाए को अच्छा माना जाता है । फिर भी पाया कोई भी हो, तपाए बगैर यानि मेहनत कराए बगैर शनि किसी को भी कोई फल नहीं देता । इसलिए इस दौरान कर्म की कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

ऐसी धारणा है कि शनि की पनौती तुला, वृषभ, कुंभ और मकर लग्न के लिए प्रगति कारक होती है क्योंकि शनि तुला व वृषभ लग्न में योगकारक है तथा कुंभ व मकर लग्न में लग्नाधिपति है। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन चारों लग्नों के जातक को पनौती के दौरान किए गए परिश्रम का थोड़ा बहुत परिणाम विलंब से ही सही लेकिन मिलता अवश्य है।इसके बावजूद इन जातकों को भी मानसिक यातना से गुजरना तो पड़ता ही है। तथ्य यह है कि पनौती चंद्र पर शनि के गोचर का परिणाम है और चंद्र अर्थात मन।

शनि के पनौती के दौरान उसके कठोर परिणामों को कुछ मृदु करने के लिए शास्त्रों में कुछ उपाय बताए गए हैं। इस अवधि में हनुमान चालीसा का पाठ करना, बजरंग बाण का करना, ओम शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करना, शनिवार को हनुमानजी को तेल-सिंदूर चढ़ाना, महामृत्युजंय मंत्र का जाप करना, शनि अमावस्या को व्रत करना,शनिवार को खाद् पदार्थ या तली हुई चीज का दान करना लाभदायक होता है।

साभार : गणेशा स्पीक्स डॉट कॉम

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