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ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहणां बोधकम् शास्त्रं

ज्योतिष जिज्ञासा
ज्योतिष जिज्ञासा
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“सूर्य और अन्य ग्रहों के साथ भविष्य का ज्ञान देनेवाला शास्त्र अर्थात ज्योतिष

 

‘ज्योतिष’ शब्द का संधि विच्छेद करें तो यह होता है ज्योत + ईश, अर्थात्, ईश्वर की रोशनी। ज्योतिष का कार्य प्रकाश देना है, अर्थात् ईश्वर की संयोजना पर प्रकाश डालनेवाला शास्त्र ‘ज्योतिष’।

किसी भी व्यक्ति, राष्ट्र, घटना या किसी प्रकार की समस्या का जिस समय जन्म होता है, उस समय आकाश में स्थित ग्रहों की स्थिति के आधार पर उस व्यक्ति या घटना का भविष्य बताया जा सकता है । इसके लिए निश्चित नियम हैं, उन नियमों के प्रति व्यावहारिक अभिगम रखकर, अपने विवेक बुद्धि का उपयोग करके ज्योतिषी अर्थात् भविष्यवेत्ता भविष्य दर्शन करा सकता है ।

त्रिकाल ज्ञान की यह रचना सदियों पुरानी है । समस्त विश्व में अब इसे स्वीकार किया गया है कि वेद स्वयंभू है और उसके रचयिता ने इसमें जीवन तथा जीवन पूर्व और जीवन पश्चात घटनेवाली सभी बातों को बताया है । इतना गहन ज्ञान सर्वोपरि ईश्वर के अतिरिक्त अन्य किसका हो सकता है?

वेद के कुल छः अंग है ।

(1) ज्योतिष
(2) व्याकरण
(3) शिक्षा
(4) निरुक्त
(5) कल्प
(6) छेद

इन छः अंगों में ‘ज्योतिषं वेद चक्षुरस्तु’ अर्थात् ऐसा कहा गया है कि ज्योतिष उस वेद का नेत्र है । व्याकरण उन वेदों का कान है । कल्प उन वेदों का हाथ है और छंद को दोनों चरण कहा गया है ।

ज्योतः शास्त्रन्तु यो वेद सयाति परमां गतिम् – ज्योतिष शास्त्र को जाननेवाला ईश्वर को पाकर परमगति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति करता है ।

ज्योतिष शास्त्र पूर्णतः विज्ञान है, जो ग्रहों की गति के आधार पर प्रत्येक बात की भविष्यवाणी कर सकता है। तार्किक रूप से प्रमाणित होनेवाली बातें भी ज्योतिष की दृष्टि से देखने पर अनेक बार अतार्किक लगती है और ऐसा होने पर भी भविष्य कथन तर्क से परे विद्या है । तर्क संभावना है, जबकि ज्योतिष सत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है ।

पृथ्वी पर से देखें तो जो-जो ग्रह नियत समय, नियत स्थान और निश्चित समय तथा समयावधि के दौरान देखे जाते हैं उन्हें सूचक मानकर और रचित ग्रह विज्ञान जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलूओं के बारे में जानकारी पाने का अदभुत साधन है । इस शास्त्र द्वारा आप अन्य व्यक्तियों के स्वभाव को जानकर उसके साथ उसके अनुरूप व्यवहार कर सकते हैं । उसी प्रकार आप भविष्य में घटनेवाली अच्छी या बुरी घटनाओं के बारे में दूरदर्शिता अपना सकते हैं ।

बेबिलोन में ई.स. पूर्व 1600 के वर्ष में रचित ज्योतिष शास्त्र की हस्त प्रतिलिपि इतिहासकारों को प्राप्त हुई। भारत में ‘यवन जातक’ तथा वराह मिहीर द्वारा रचित पुस्तकें भी ईसा पूर्व की है । ‘यवन जातक’ संस्कृत विद्वानों द्वारा भारतीय तथा ग्रीक ज्योतिष का किया गया संकलन है ।ज्योतिष शास्त्र पर ऋग्वेद में तीस श्लोक, यजुर्वेद में चौवालीस तथा अथर्ववेद में एक सौ बासठ श्लोक हैं । वेदों का रचनाकाल ई.सन पूर्व 1500 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है । पहले के समय में मात्र श्रुति और स्मृति परंपरा द्वारा हरेक शास्त्र पढ़ाया जाता था । ऐसा होने से उसके पूर्व की हस्तलिखित प्रतियाँ विशेष रूप से ज्योतिष विज्ञान के संदर्भ में लगभग अप्राप्य हैं । परंतु वेद जो आदिकाल से चलते आए हैं वे ज्योतिष के मजबूत आधार है ।

इस विज्ञान का विकास समग्र पृथ्वी पर अलग-अलग समय तथा अनेक सदियों के दौरान एक ही समय हुआ था जिसका प्रमाण इस विज्ञान की पुरानी पद्धति की तुलना करने पर होता है । तत्कालीन समय में सांस्कृतिक आदान-प्रदान वर्तमान समय की तरह सरल न होने पर भी ग्रीस, भारत और बेबीलोन में ज्योतिष के विकास में बहुत साम्यता दृष्टिगोचर होता है।

ज्योतिष शास्त्र का सही और वैज्ञानिक उपयोग सुखी सामाजिक व्यवस्था बनाने के लिए करना चाहिए । आज थेलेसेमीया से पीड़ित दो व्यक्तियों के बीच वैवाहिक संबंध होने से जन्म लेने वाला संतान थेलेसेमीया माइनर से ग्रसित हो सकता है, ऐसा चिकित्सा – विज्ञान कह सकता है । वैसे ही कुंडली मिलानेवाला ज्योतिषी भी मध्य नाड़ी दोष देखकर संतान का भविष्य बता सकता है ।

ज्योतिष का विस्तृत और वैज्ञानिक उपयोग करने से जीवनस्तर उच्चतर बनाया जा सकता है। सबसे अधिक शक्तिशाली है, काल अर्थात् समय- जो राजा को रंक और रंक को राजा बना सकता है। इसीलिए कहा जाता है – ओम कालाय तस्मै नमः

भावेश एन. पट्टणी एवं धर्मेश जोषी
गणेशास्पीक्स डॉट कॉम

साभार : गणेशा स्पीक्स डॉट कॉम

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