- 199 Posts
- 36 Comments
पराशरीय पद्धति (Parashari Principles): जीवन में घटनेवाली महत्त्वपूर्ण घटनाओ का ग्रहों की दशा अन्तर्दशा से पूर्वाभास
वैदिक ज्योतिष शास्त्र (Ancient Astrology) में जिस पद्धति को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है वह पराशरीय पद्धति है। पराशरीय पद्धति मूल रुप से ज्योतिष (Astrology) के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ “बृहद पराशर होरा शास्त्र” के सिद्धांतों पर चलता है। इस ग्रंथ के रचयिता महर्षि पराशर (Maharishi Parashar) हैं और इसी कारण से इस पद्धति को पराशरीय पद्धति कहते हैं। “बृहद पराशर होरा शास्त्र” वैदिक ज्योतिष शास्त्र का एक अद्भुत ग्रन्थ है जिसके नियमो का अनुसरण ज्योतिष शास्त्र के लगभग सभी ग्रन्थ करते है और ज्योतिष में गणित व फलादेश सम्बन्धी सभी नियम उन्हीं की देन है।
इस पद्धति के अनुसार एक व्यक्ति विशेष की जन्म तिथि, जन्म का स्थान व जन्म का स्थानीय समय लिख लिया जाता है। इसकी ज्योतिषीय गणना उस स्थान विशेष के रेखांश (Longitude) व अक्षांश (Latitude) के आधार पर की जाती है। उस समय पर पूर्वी क्षितिज पर उदित राशी को उस व्यक्ति का जन्म लग्न मान लिया जाता है और उस समय के ग्रहों (Planets) की विभिन्न राशियों (star signs) मंर गोचर की स्थिति के अनुसार ग्रहों को उन राशियों में लिख दिया जाता है और इस प्रकार से जन्म कुंडली बना ली जाती है।
इस पद्धति के अनुसार, जन्म कुंडली (Horoscope) के बारह भाव होते है।
1. पहला भाव व्यक्ति के शरीर और व्यवहार को दर्शाता है
2. द्वितीय भाव धन व परिवार को
3. तृतीय भाव भाई बहन व साहस
4. चतुर्थ भाव चल अचल संपत्ति
5. पंचम भाव विद्या, पूर्व पुण्य व संतान
6. छठा भाव बीमारी, क़र्ज़ व शत्रु
7. सप्तम भाव विवाह व विदेश यात्रा
8. अष्टम भाव आयु
9. नवम भाव भाग्य
10. दशम भाव कार्य व व्यवसाय
11. एकादश भाव उपलब्धिया व लाभ और अंत में
12. द्वादश भाव हानि, अस्पताल, जेल व अंततः मोक्ष प्राप्ति को दर्शाता है.
इस पद्धति के अनुसार, जन्म कुंडली में नौ ग्रह होते हैं, सूर्य, चन्द्र, बुध, शुक्र, मंगल, ब्रहस्पति, शनि, राहू व केतु। इनकी दशाएं बताई गई हैं जो इस तरह है, सूर्य की छह वर्ष, चन्द्र की दस वर्ष, मंगल की सात वर्ष, शुक्र की बीस वर्ष, राहू की अट्ठारह वर्ष, केतु की सात वर्ष, शनि की उन्नीस वर्ष, बुध की सत्रह वर्ष और बृहस्पति की सोलह वर्ष निर्धारित की गयी है। इनकी गणना जातक के जन्म के समय पर चन्द्रमा के भोगांश के अनुसार की जाती है। यह सभी ग्रह एक व्यक्ति के जीवन में घटने वाली सभी घटनाओं का पूर्वाभास करवाते हैं।
उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति के व्यवसाय में उन्नति विशेष महत्व रखती है। शुभ ग्रहों की दशा व अन्तर्दशा में व्यक्ति के व्यवसाय में उत्थान होता है व सफलता मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ ग्रह विशेष शुभ फल प्रदान करते हैं। जब ये ग्रह एक दूसरे से सम सप्तक होते है या एक दूसरे की राशि में होते हैं तो अपनी दशा व अन्तर्दशा में व्यवसाय में उन्नति व नौकरी में उच्च पद की प्राप्ति करवाते हैं। इसी प्रकार द्वितीय व एकादशा के स्वामी ग्रह व्यक्ति को धन की प्राप्ति के साथ समाज में सुयश की प्राप्ति भी करवाते हैं। तृतीय व पंचम भाव लेखन क्षमता का परिचय करवाते हैं। चतुर्थ भाव जमीन जायदाद से होने वाले लाभ व हानि को बताते हैं। पंचम भाव बचपन में शिक्षा, जवानी में संतान व उसके बाद धार्मिक जीवन को दर्शाता है। छठा भाव रोग व रोग से लड़ने की क्षमता को दर्शाता है। सप्तम भाव विवाह व जीवन साथी के साथ सम्बन्ध के बारे में जानकारी देता है। अष्टम भाव आयु,नौवां भाव भाग्य, दशम भाव व्यवसाय में प्रगति व धन लाभ तथा अंतिम बारहवां भाव जीवन का अंत अर्थात मोक्ष को दिखाता है।
पराशरीय पद्धति के ज्योतिषीय सिद्धांत से आप अपने जीवन के काफी सुखद बना सकते हैं।
नीता बाखरू
प्रख्यात ज्योतिषी
Read Comments