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ज्योतिष गणना का विज्ञान – Joytish Principles

ज्योतिष जिज्ञासा
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ज्योतिष मुख्यतः एक विज्ञान है, जिसमें किसी भी जातक के जन्म के समय आकाशीय ग्रह नक्षत्रों की स्थिति की गणना की जाती है और उस गणना के अनुसार जातक के भविष्य की जानकारी प्राप्त होती है। ज्योतिष गणना में मुख्य रुप से जिन ग्रहों की स्थिति को ध्यान में रखा जाता है वे इस प्रकार हैं – सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू, केतु, हर्शल, वरुण,प्लूटो । ज्योतिष गणना के आधार पर भविष्य की जानकारी प्राप्त करके आने वाली मुश्किलों की तैयारी की जा सकती है तथा अच्छे समय की बेहतरीन तरीके से योजना बनाई जा सकती है। ज्योतिष शास्त्र में विभिन्न शाखाएं हैं जिसके आधार पर भविष्यवाणी की जाती है।

ज्योतिष की कुछ शाखाएं इस प्रकार हैं –

(१) फल ज्योतिष अर्थात कुंडली का शास्त्र, जिसमें जातक के जन्म की पूरी जानकारी जरुरी रहती है,जैसे – जन्म, दिनांक, जन्म समय, जन्म स्थल। फल ज्योतिष भी विभागों में बंटा हुआ है।

(२) हस्त सामुद्रिक – जिसमें हाथ की लकीरें देखकर जातक के भविष्य तथा उसके विषय में बताया जाता है। इसमें जन्म की जानकारी होना जरुरी नहीं होती ।

(३) नाडी ज्योतिष – जिसमे अंगूठे की लकीरें देखकर भविष्य बताया जाता है। इसमें भी जन्म की जानकारी का होना जरुरी नहीं ।

(४) मुद्रा शास्र – इसमें जातक का चेहरा देखकर जातक के संबंध में व उसके भविष्य के बारे में बताया जाता है। इसमें भी जन्म की जानकारी होना जरुरी नहीं।

(५) छाया शास्र – इसमें जातक की छाया सूर्य प्रकाश में देखकर भविष्य बताई जाती है।इसमें भी जन्म की जानकारी का होना जरुरी नहीं होता है।

(६) रमल शास्र- इसमें जातक के प्रश्न का जवाब दिया जाता है।

ज्योतिष शास्त्र करीब ५००० साल पुराना है और इसकी खोज हमारे ऋषियों ने की थी। इस शास्त्र का जिक्र हमारे वेदों में भी मिलता है। यह एक गणना है तथा गणना जितनी सही होगी भविष्यवाणी उतनी ही सटीक होगी।

साभार: गणेशास्पीक्स डॉट कॉम

Ganesha Speaks

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